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सोमवार, 24 मार्च 2014

LESSONS FORM A CIVIL ASPIRANT

ये पोस्ट का ख्याल बहुत लम्बे समय से था पर लगता था कि लिखू किसके लिए।  पर अब सही वक्त  है उसकी कहानी बताने का। यह कहानी सच्ची है मेरे दोस्त से जुडी है।सुविधा के लिए उसका नाम चिंतक रख लेते है।  उसका सही नाम नही लिख रहा हु पर शहर का जिक्र सही सही कर रहा हु। यह कहानी किसी कि भी हो सकती है मेरी आपकी आपके दोस्त की किसी की भी। सफल लोगो की कहानी बहुत सुनी होगी , बहुत से साक्षात्कार पढ़े होगे पर आप ने कभी किसी हारे हुए इंसान से बात की है। वास्तव में एक सफल व्यक्ति से कही ज्यादा असफल व्यक्ति से सीखा  जा सकता है। 
वो कक्षा १० में था तब उसके किसी टीचर ने बताया कि सबसे बड़ी नौकरी आईएएस की  होती है बस इतना काफी था उसके लिए। बहुत जुनूनी था वह। उसने सोच लिया कि कुछ भी हो जाये पर वह आईएएस बन कर ही मानेगा। जैसा कि हर कथा नायक के साथ होता है हमारे इस कथा नायक इस आर्थिक दशा बहुत खराब थी। इलाहाबाद के एक छोटे से गाव से वह था घर में एक छोटी सी दुकान थी जिसमे उसके पिता बैठते थे। खेती इतनी कम थी कि वह और उसकी माँ उसे टैक्टर या बैलों से जुतवाने के बजाय  फावड़े से ही जोत लेते थे। ये सब इस लिए बता रहा हु ताकि पता चले इतनी विकट परिस्थिति में भी वो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित था। 
मेरी उसके मुलाकात लखनऊ के भागीदारी भवन में हुई थी। भागीदारी भवन , आर्थिक रूप से कमजोर पर मेधावान छात्रो के लिए निःशुल्क आवास , कोचिंग , सलाह देने के लिए है (कभी उसके बारे में विस्तार से लिखूगा ) . 
भागीदारी भवन में १०० लड़को में वो अलग था। हमेशा रूम में रहना , किसी से भी बात न करना , समय पर नास्ते के लिए निकलना। एक कमरे में दो लोग रहते थे। मेरी पहली बार उसके रूम में ही मुलाकात हुई थी। उसके रूम पार्टनर से मै कुछ पूछ रहा था चिंतक जी ने  बहुत तेज आवाज ने कहा इस कमरे में बात नही होगी। उन दिनों मेरी दशा खरगोश जैसी थी हमेशा डरा हुआ। छोटे शहर से , साधारण कॉलेज से पढ़ा और बहुत साधारण नम्बरो से पास।चिंतक जी पूर्व के ऑक्सफ़ोर्ड कहे जाने वाले इल्हाबाद विश्वविदालय से पढ़ कर निकले थे।  सबसे बड़ी बात स्नातक की परीक्षा पास करते ही आईएएस का एग्जाम दिया और  पहली ही बार में आईएएस की प्री परीक्षा पास कर ली थी। ये बात २००७ की है।  ऐसे में चिंतक जी द्वारा डॉट दिया जाना बुरा नही लगा। महान गुरु तो पहले पहल डाटते ही है लोगो के पहचान करना मुझे आता था मैंने भी सोच लिया था कि अगर कुछ सीखना है तो चिंतक जी से ही सीखना है। । सच कहु तो अगर आज जो भी मैंने पाया है जो भी सफलता पायी है इसमें चिंतक जी का अप्रत्यक्ष  रूप में हाथ है। उनके जोश और जूनून को देखते ही बनता था। मैंने उन्हें कभी अपने अभावो का रोना रोते नही देखा। उन दिनों सिविल सेवा में कुछ ऐसे लोग सफल हो रहे थे जो बहुत ही साधारण थे। रिक्शे वाले के लड़के , मजदूर , सब्जी बेचने वाली  की  बेटी। जो ऎसी खबरो को बहुत गम्भीरता से पढ़ते। मै ऎसे परिवार से था जहाँ ज्यादा आभाव तो नही था पर जिम्मेदारी जल्द उठानी थी। मै कर्मचारी चयन आयोग की तैयारी कर रहा था। आईएएस को ज्यादा महत्व नही देता था  क्योकि मुझे लगता था एक जॉब मिल जाये बस। चिंतक जी से मिलने के बाद मै भी सिविल सेवा में कूद पडा पर साथ में कुछ और एग्जाम भी देता रहा। चिंतक जी की सोच थी कि सिविल सेवा के अलावा दूसरी परीक्षा देने से भटकाव होगा। अर्जुन की तरह केवल एक लक्ष्य। बस यही पर मेरा उनसे मतभेद था। मेरा यह सोचना था कि जोश और जूनून कितना क्यों न हो। धन के आभाव में ये सब व्यर्थ है।

चिंतक जी से जुडी पोस्ट पढने के लिए क्लिक करिये .


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